देवी तारा – महाविद्याओं में द्वितीय स्वरूप है।
मां तारा दस महाविद्याओं में दूसरी महाविद्या हैं। वे करुणामयी, रक्षक और उग्र शक्ति की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। तारा देवी को संकट हरने वाली, भक्तों की रक्षा करने वाली और ज्ञान व मुक्ति प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।
देवी तारा का स्वरूप नीला होता है, और वे संसार के कष्टों को नष्ट करने वाली हैं। उन्हें “नील सरस्वती“ भी कहा जाता है, क्योंकि वे ज्ञान, विद्या और वाणी की भी देवी मानी जाती हैं।
मां तारा की विशेषताएँ:
- वे भक्तों की हर विपत्ति को दूर कर कल्याण करने वाली हैं।
- अकाल मृत्यु से रक्षा करती हैं।
- साधकों को अद्भुत शक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती हैं।
- धन, विद्या और समृद्धि प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं।
मंत्र:
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्॥
ॐ तारे तुत्तारे तुरे स्वाहा॥
मां तारा यंत्र – संकट नाशक और रक्षा कवच
मां तारा यंत्र एक शक्तिशाली यंत्र है, जिसे देवी तारा की कृपा प्राप्त करने के लिए स्थापित किया जाता है। यह यंत्र न केवल विपत्तियों से बचाता है, बल्कि साधक को आध्यात्मिक शक्ति और सफलता भी प्रदान करता है।
मां तारा यंत्र के लाभ:
- जीवन में आने वाले संकटों और कठिनाइयों को दूर करता है।
- अकाल मृत्यु और दुर्घटनाओं से रक्षा करता है।
- धन, विद्या और ज्ञान की प्राप्ति कराता है।
- आध्यात्मिक जागरण और आत्मविश्वास बढ़ाता है।
- तंत्र-साधना और सिद्धियों की प्राप्ति में सहायक होता है।
मां तारा यंत्र की स्थापना और पूजा विधि
- शुभ मुहूर्त – अमावस्या, नवरात्रि, या मंगलवार को स्थापना करें।
- स्थान – इसे पूजा कक्ष, व्यापार स्थल या सिद्धि स्थान पर रखें।
- शुद्धि – यंत्र को गंगाजल, कुमकुम और चंदन से शुद्ध करें।
- अर्चना – नीले और लाल पुष्प, दीपक, धूप और नैवेद्य अर्पित करें।
- मंत्र जाप –
- ॐ ह्रीं तारे तुत्तारे तुरे स्वाहा मंत्र का 108 बार जाप करें।
- दुर्गा सप्तशती या तारा स्तोत्र का पाठ करें।
- विशेष उपाय –
- गरीबों को भोजन कराएं और पक्षियों को दाना डालें।
- नीले और सफेद वस्त्र धारण करें।
- देवी तारा के बीज मंत्रों का नियमित जाप करें।