Vastu Devta Yantra​

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वास्तु देवदिशाओं और संतुलन के रक्षक

वास्तु देवता को दिशाओं, ऊर्जा संतुलन और वास्तु शास्त्र का संरक्षक माना जाता है। किसी भी भवन, घर, या व्यापार स्थल में वास्तु दोष होने पर नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे आर्थिक, मानसिक और शारीरिक परेशानियां आ सकती हैं। वास्तु देव की पूजा करने से दिशाओं में संतुलन आता है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

 

वास्तु देव की विशेषताएँ:

  • भवन और भूमि की ऊर्जा को शुद्ध और संतुलित करते हैं।
  • नकारात्मक शक्तियों, क्लेश और अशुभ प्रभावों को दूर करते हैं।
  • धन, स्वास्थ्य और सफलता में वृद्धि करते हैं।
  • व्यापार और करियर में बाधाओं को समाप्त करते हैं।
  • परिवार में शांति और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखते हैं।

मंत्र:
वास्तोष्पते प्रतिजानिहि तन्मनो गृहे सं विसृज्यतम्।
नो मन्दीषठ व्रते॥

 

वास्तु देवता यंत्र नकारात्मक ऊर्जा और वास्तु दोषों का समाधान

वास्तु देवता यंत्र एक शक्तिशाली यंत्र है, जो घर, व्यापार स्थल, कार्यालय या किसी भी भवन में उत्पन्न वास्तु दोषों को समाप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह यंत्र दिशाओं की बाधाओं को दूर करता है और घर में सुख-शांति, समृद्धि और सफलता लाने में सहायक होता है।

 

वास्तु देवता यंत्र के लाभ:

  • घर, व्यापार स्थल और ऑफिस में वास्तु दोषों को समाप्त करता है।
  • नकारात्मक ऊर्जा और दुष्प्रभावों को दूर करता है।
  • धन, स्वास्थ्य, और समृद्धि को बढ़ावा देता है।
  • परिवार में सौहार्द, शांति और प्रेम बनाए रखता है।
  • रोग, दुर्घटनाएं और आर्थिक समस्याओं से बचाव करता है।
  • व्यापार में सफलता और समृद्धि को बढ़ाता है।

 

वास्तु देवता यंत्र की स्थापना और पूजा विधि

  1. शुभ मुहूर्त – मंगलवार, शनिवार, पूर्णिमा, या दीपावली के दिन स्थापित करें।
  2. स्थान – इसे मुख्य द्वार, पूजा स्थल, तिजोरी, या व्यापार स्थल पर रखें।
  3. शुद्धि – यंत्र को गंगाजल, कुमकुम और हल्दी से शुद्ध करें।
  4. अर्चना – वास्तु देवता को पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  5. मंत्र जाप
    • वास्तु देवाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
    • श्री सूक्त, गणपति अथर्वशीर्ष, और महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करें।
  6. विशेष उपाय
    • घर के मुख्य द्वार पर स्वस्तिक बनाएं और गंगाजल का छिड़काव करें।
    • शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं।
    • घर में नियमित रूप से श्री विष्णु सहस्रनाम और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

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