यो गुरुः स शिवः प्रोक्तो यः शिवः स गुरुः स्मृतः ।
गुरुर्वा शिव एवाथ विद्याकारेण संस्थितः ॥ २०
यथा शिवस्तथा विद्या यथा विद्या तथा गुरुः ।
शिवविद्या गुरूणां च पूजया सदृशं फलम् ॥ २१
जो गुरु है, वह शिव कहा गया है और जो शिव है, वह गुरु माना गया है।
विद्या के आकार में शिव ही गुरु बनकर विराजमान हैं। जैसे शिव हैं, वैसी विद्या है। जैसी विद्या है, वैसे गुरु हैं।
शिव, विद्या और गुरु के पूजन से समान फल मिलता है। ॥ २०-२१
ॐ नमः शिवाय, प्रिय शिव भक्तों। हर हर शिव, घर-घर शिव।
कलियुग में जहां हर तरफ लालच, हिंसा, असत्य, लोभ, मोह, माया, कामुकता, और अश्लीलता का वर्चस्व है, इतने पतन के बाद भी अगर कुछ सात्विक गुणी लोग (विशेष रूप से पढ़े-लिखे युवा और हमारी बहन-बेटियां) शिव तत्व से जुड़ना चाहते हैं, तो पता चलता है कि शिव मंत्र से वे वंचित हैं।
कई शिव भक्त शिव मंत्र जाप या शिव नाम जप करना चाहते हैं पर कर नहीं पाते, गुरु नहीं मिलता, सही मार्गदर्शन नहीं मिलता, इंटरनेट पर तरह-तरह की वीडियो देखकर असमंजस में पड़ जाते हैं, ऊपर से लंबे, कठिन और जटिल कर्मकांडों में उलझकर रह जाते हैं।
पूजा, मंत्र जाप करने से डर होता है - कहीं उल्टा तो नहीं होगा, कहीं कुछ गलत तो नहीं होगा, कहीं पाप नहीं लगेगा, कहीं भगवान रुष्ट तो नहीं हो जाएंगे - इन सभी भ्रमों के कारण लगातार लोग करते नहीं और सनातन धर्म कमजोर होते जा रहे हैं।
हमने यह गुरु-शिष्य 'शिव की साधना' शिव शक्ति कुण्डलिनी योग मेडिटेशन' यात्रा आरंभ की है, ताकि सही साधकों को शिव भक्ति, करुणा और महादेव का आशीर्वाद प्राप्त हो।
पापिनां च यथा सङ्गात्तत्पापात्पतितो भवेत्।
यथेह वह्निसम्पर्कात् मलं त्यजति काञ्चनम्।
तथैव गुरुसम्पर्कात् पापं त्यजति मानवः ॥ २६
यथा वह्निसमीपस्थो घृतकुम्भो विलीयते।
तथा पापं विलीयेत ह्याचार्यस्य समीपतः ॥ २७
यथा प्रज्वलितो वह्निः शुष्कमाई च निर्दहेत्।
तथायमपि सन्तुष्टो गुरुः पापं क्षणाद्दहेत् ॥ २८
जैसे पापियों के संगके कारण उनके पापसे मनुष्य पतित हो जाता है, जैसे अग्नि के सम्पर्क से सोना मल( गन्दगी) छोड़ देता है, वैसे ही गुरु के सम्पर्क से मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है।
जैसे अग्नि के पास स्थित घड़े में रखा हुआ घृत पिघल जाता है, वैसे ही गुरु के सम्पर्क से शिष्य का पाप गल जाता है। जैसे प्रज्वलित अग्नि सूखे तथा गीले पदार्थको जला डालती है, वैसे ही प्रसन्न हुए ये गुरु भी क्षण भर में पाप को जला देते हैं॥ २६-२८ ॥
संस्कृत में गुरु शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। 'गु' शब्द का अर्थ होता है अंधकार और 'रु' शब्द का अर्थ होता है प्रकाश। इस प्रकार गुरु शब्द का अर्थ हुआ अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाला। गुरु - अंधकार को दूर करने वाला।
दीक्षा के द्वारा शिष्य में यह सामर्थ्य उत्पन्न होता है कि गुरु से प्राप्त ऊर्जा के द्वारा शिष्य के अंदर आतंरिक ज्योति प्रज्ज्वलित होती है, जिसके प्रकाश में वह अपने अस्तित्व के उद्देश्य को देख पाने में सक्षम होता है. दीक्षा से अपूर्णता का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है. गुरु का ईश्वर से साक्षात संबंध होता है. ऐसा गुरु जब अपनी आध्यात्मिक/प्राणिक ऊर्जा का कुछ अंश एक समर्पित शिष्य को हस्तांतरित करता है तो यह प्रक्रिया गुरु दीक्षा कहलाती है.
गुरु का उत्तरदायित्व समस्त बाधाओं को दूर करते हुए शिष्य को आध्यात्मिकता की चरम सीमा पर पहुंचाना होता है। वहीं शिष्य का उत्तरदायित्व हर परिस्थिति में गुरु भक्ति करना, गुरु के कामों को सिद्ध करना, और गुरु की नियमों का पालन करना होता है।
समय दीक्षा, मार्ग दीक्षा, शाम्भवी दीक्षा, चक्र जागरण दीक्षा, विद्या दीक्षा, स्पर्श दीक्षा, पूर्णाभिषेक दीक्षा, उपनयन दीक्षा, मंत्र दीक्षा, वाग-दीक्षा, मानस दीक्षा, अग्नि यज्ञ दीक्षा, क्रिया योग दीक्षा, स्पर्श दीक्षा, दृष्टि द्रिक दीक्षा, कर्म संन्यास दीक्षा, पूर्ण संन्यास दीक्षा, अघोर संशान दीक्षा, नाथ दीक्षा, तांत्रिक दीक्षा - क्रियावती, कलावती, वर्णमयी, वेदमयी आदि।
शांभवी चैव शाक्ती च मांत्री चैव शिवागमे।
दीक्षोपदिश्यते त्रेधा शिवेन परमात्मना ॥ ६
शिव-शास्त्र में परमात्मा शिवने 'शाम्भवी', 'शाक्ती' और 'मान्त्री' तीन प्रकारकी दीक्षा का उपदेश किया है॥ ६॥
सदाचारी: जो सदैव धार्मिक और नैतिक मूल्यों का पालन करता है।
श्रद्धालुता: एक सत्यापित गुरु की पहचान करने का पहला गुण उनकी श्रद्धालुता होती है।
ज्ञान: गुरु के पास गहरा और विस्तृत ज्ञान होना चाहिए।
आदर्श: गुरु को अपने आदर्शों के अनुसार जीना चाहिए।
संवेदनशीलता: एक अच्छे गुरु को अपने शिष्यों की भावनाओं को समझने की क्षमता होनी चाहिए।
परिश्रम: गुरु को अपने काम में लगाव और परिश्रम का परिचय होना चाहिए।
संतुलन: एक सच्चे गुरु का जीवन संतुलित होता है, और वह भोग और त्याग के बीच संतुलन बनाए रखते हैं।
नेतृत्व: गुरु को अपने शिष्यों को सही राह दिखाने में नेतृत्व का दायरा होना चाहिए।
संयम: गुरु को संयमी और सावधान होना चाहिए, और वह अपने इंद्रियों को नियंत्रित कर सकते हैं।
1. गुरु योगी है या गुरु भोगी है।
2. गुरु जो कहते हैं, वही करते हैं, या गुरुजी के कथन और कर्म में फर्क है।
3. गुरु की सिम्प्लिसिटी और साधना या गुरु का स्वैग(SWAG) और एसयूवी(SUV)।
4. गुरु का आउरा बहुत दिव्य है या गुरु की डिज़ाइनर ड्रेस बहुत वाह है।
5. गुरु बहुत सुंदर दिखते हैं या गुरु के विचार बहुत सुंदर हैं।
6. गुरु, घर छोड़कर आ जाओ या घर रहकर माता-पिता की सेवा करो।
7. शिव भक्त, शिव तत्व ज्ञानी, बस सास-बहु की किस्से और चुटकुले।
8. गुर माइंड ओपनर है या गुरु, माइंड वॉशर है।
9. आँखों में करुणा दिखती है या आँखों में अहंकार दिखता है ।
धर्म अनुरागी, उत्तम संस्कार वाला
गुरु के वचनों पर पूर्ण विश्वास करने वाला
आज्ञाकारी, आस्तिक, सदाचारी, कृपालु, सत्य वाणी वाला
चपलता, कुटिलता, क्रोध, मोह, लोभ, ईर्ष्या से दूर रहने वाला
अवगुणों से दूर, जितेन्द्रिय, वैरागी
निंदा, छिद्रान्वेषण, कटु भाषण और सिगरेट मद्य इत्यादि व्यसनों से दूर रहने वाला
गुरु के सदुपदेशों पर चिंतन मनन करने वाला
शिव शक्ति में अटूट श्रद्धा और विश्वास वाला
गुरु की भक्ति सेवा में उत्साह रखने वाला
गुरु के मिशन को आगे बढ़ाने वाला
हे वरानने, आज्ञाहीन, क्रियाहीन, श्रद्धाहीन तथा विधि के पालनार्थ दक्षिणाहीन जो जप किया जाता है वह निष्फल होता है. इस वाक्य से गुरु दीक्षा का महत्व स्थापित होता है. दीक्षा के उपरान्त आदान-प्रदान की प्रक्रिया गुरु और शिष्य दोनों के सामर्थ्य पर निर्भर करती है. दीक्षा में गुरु के सम्पूर्ण होने का महत्व तो है ही किन्तु सबसे अधिक महत्व शिष्य के योग्य होने का है. क्योंकि दीक्षा की सफलता शिष्य की योग्यता पर ही निर्भर करती है.
शिष्य यदि गुरु की ऊर्जा और ज्ञान को आत्मसात कर अपने जीवन में न उतार पाए अर्थात क्रियान्वित न करे तो श्रेष्ठ प्रक्रिया भी व्यर्थ हो जाती है. इसलिए अधिकांशतः गुरु शिष्य के धैर्य, समर्पण और योग्यता का परीक्षण एक वर्ष तक या इससे भी अधिक अवधि तक विभिन्न विधियों से करने के उपरान्त ही विशेष दीक्षा देते है
प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार था गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, उनका शिष्यों के प्रति स्नेह भाव, तथा ज्ञान बांटने का निःस्वार्थ भाव. शिक्षक में होती थी, गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास तथा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं आज्ञाकारिता. अनुशासन शिष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है.
न तु तत्त्वं त्यजेज्जातु नोपेक्षेत कथंचन ।
इत्रानंदः प्रबोधो वा नाल्पमप्युपलभ्यते ।। ४६
तत्त्वको न तो कभी छोड़े और न किसी तरह भी उसकी उपेक्षा ही करे। जिसके पास एक वर्षतक रहनेपर भी शिष्य को थोडे से भी आनन्द और प्रबोध की उपलब्धि न हो, वह शिष्य उसे छोड़कर दूसरे गुरु का आश्रय ले ॥ ४६१/२ ॥
वत्सरादपि शिष्येण सोऽन्यं गुरुमुपाश्रयेत् ।
गुरुमन्यं प्रपन्नेऽपि नावमन्येत पौर्विकम्।
गुरोर्भातृस्तथा पुत्रान् बोधकान् प्रेरकानपि ।। ४७
दूसरे गुरु के शरणागत होनेपर भी पूर्वगुरुका, गुरु के भाइयों का, उनके पुत्रोंका, उपदेशकों का तथा प्रेरकों का अपमान न करे ॥ ४७ ॥
बहुत्वेऽपि हि मन्त्राणां सर्वज्ञेन शिवेन यः।
प्रणीतो विमलो मन्त्रो न तेन सदूशः क्वचित्॥३०॥
मन्त्रों की संख्या बहुत होने पर भी षडक्षर-मन्त्र का निर्माण सर्वज्ञ शिव ने किया है, उसके समान कहीं कोई दूसरा मन्त्र नहीं है॥३०॥
तावदाराधयेच्छिष्यः प्रसन्नोऽसौ भवेद्यथा।
तस्मिन् प्रसन्ने शिष्यस्य सद्यः पापक्षयो भवेत् ॥ ५०
तस्माद्धनानि रत्नानि क्षेत्राणि च गृहाणि च।
भूषणानि च वासांसि यानशय्यासनानि च ॥ ५१
एतानि गुरवे दद्याद्भक्त्या वित्तानुसारतः।
वित्तशाठ्यं न कुर्वीत यदीच्छेत्परमां गतिम् ॥ ५२
शिष्य को चाहिये कि तब तक उनकी आराधना करे, जब तक वे प्रसन्न न हो जाएँ। उनके प्रसन्न हो जानेपर शीघ्र ही शिष्यके पापका नाश हो जाता है, अतः धन, रत्न, क्षेत्र, गृह, आभूषण, वस्त्र, वाहन, शय्या, आसन-यह सब भक्तिपूर्वक अपने धन- सामर्थ्यके अनुसार गुरुको प्रदान करना चाहिये। यदि शिष्य परमगति चाहता है, तो उसे धन की कृपणता नहीं करनी चाहिये ॥ ५०-५२॥
रहस्यमन्यद्वक्ष्यामि गोपनीयमिदं प्रिये।
न वाच्यं यस्य कस्यापि नास्तिकस्याथ वा पशोः ॥ ६१
हे प्रिये! मैं तुमसे एक और रहस्यमय बात कहता हूँ, इसे [सदा] गुप्त रखना चाहिये। जिस किसी भी नास्तिक अथवा पशुतुल्य प्राणीको इसे नहीं बताना ॥ ६१ ॥
सदाचारविहीनस्य पतितस्यान्त्यजस्य च।
पञ्चाक्षरात्परं नास्ति परित्राणं कलौ युगे ॥ ६२
गच्छतस्तिष्ठतो वापि स्वेच्छया कर्म कुर्वतः।
अशुचेर्वा शुचेर्वापि मन्त्रोऽयं न च निष्फलः ॥ ६३
सदाचारसे हीन, पतित और अन्त्यजका उद्धार करनेके लिये कलियुगमें पंचाक्षर मन्त्रसे बढ़कर दूसरा कोई उपाय नहीं है। चलते-फिरते, खड़े होते अथवा स्वेच्छानुसार कर्म करते हुए अपवित्र या पवित्र पुरुषके जप करनेपर भी यह मन्त्र निष्फल नहीं होता ॥ ६२-६३ ॥
शिव की साधना (Shiv Sadhna) भक्ति रस से की जाए तो बहुत ही सरल मानी जाती है, हमारे भगवान शिव मात्र 'जल' या कुछ पत्तियां चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।
लेकिन अगर किसी शिव भक्त ने एडवांस लेवल की मंत्र साधना विधिवत करने का निर्णय किया है तो इससे जुड़े कुछ विशेष नियम होते हैं।
यज्ञोपवीत संस्कार जिसका हो गया हो,
जो लोग ‘ॐ’ प्रणव का उच्चारण या जाप नहीं कर सकते उन्हे ॐ नम: शिवाय / नम: शिवाय मन्त्र का जाप करना चाहिये, मन्त्र के स्थान पर केवल शिव भक्ति नाम जाप करें
सिद्धेन गुरुणादिष्टः सुसिद्ध इति कथ्यते।
असिद्धेनापि वा दत्तः सिद्धसाध्यस्तु केवलः ॥ ६९
असाधितः साधितो वा सिध्यत्येव न संशयः।
श्रद्धातिशययुक्तस्य मयि मन्त्रे तथा गुरौ ॥ ७०
सिद्ध गुरुके उपदेशसे प्राप्त हुआ मन्त्र सुसिद्ध कहलाता है। असिद्ध गुरुका भी दिया हुआ मन्त्र सिद्ध कहा गया है। जो केवल परम्परासे प्राप्त हुआ है, किसी गुरुके उपदेशसे नहीं मिला है, वह मन्त्र साध्य होता है। जो मुझमें, मन्त्रमें तथा गुरुमें अतिशय श्रद्धा रखनेवाला है, उसको मिला हुआ मन्त्र किसी गुस्के द्वारा साधित हो या असाधित, सिद्ध होकर ही रहता है, इसमें संशय नहीं है॥ ६९-७० ॥
गुरू बिन ज्ञान कहा ये सत्य है परंतु इस समय में योग्य गुरू का मिलना भी मुश्किल है। अपने साधना की शुरुआत करें। उचित समय आने पर स्वयं गुरू आपके सामने आ जाएंगे।
"जय शिव शंकर, जय भोला भंडारी"
Diksha types Guru Ji Gives
1. Partial (Online with Guru Ji Sankalp)
2. Full Diksha (After 1-2 years of Sadhna in-person with Guru Ji Shivir)
After Online Diksha you can do
1. Shiv Naam Jap
2. Shiva Meditation Tratak Sadhna
3. Namah Shivay Jaap (Simple Process)
After 1 years of Online Diksha
you can apply for Regular Diksha
4. Poorna Siddhi 24 Lacs Mantra Sadhna Aum Namah Shivay
(Vidhivit Difficult Purushcharan Jaap with 10 Mantra Sanskar / Utlkeelan)
5. Shiv Meditation Kundalini Sadhna
For Spiritual Seekers
...Who want to Learn FREELANCING Skills
...Who want to Escape the 9to5 Trap
...Who want Practise Meditation, Yoga, Empathy, Art, Love, World Peace
Prerequisite
Should have know Computer
Basics
Should have good command over English / Hindi
Should have Own PC / Laptop
Should have Good Speed Internet Connection
Should be Vegetarian / Vegan
Should not Smoke / Drink
Should be of Good Character
those who are interested or know basic graphics design / social media...
those who are interested or know basic yoga / meditation...
Graphics Design (Illustrator + Photoshop), Sacred Design (World Art), Audio Basic (Audacity), Video Editing (Premier), Social Media (Insta, FB, Youtube), Website SEO (Onpage, Offpage, Local & Technical)
+
Shiv Meditation Kundalini Sadhna
(Hatha Yoga Teachers Training 200+300 = 500 Hours)
+
Basics of Astrology, Numerology, Rudraksha, Gemstones, Pranic Healing, Indian & World Philosophy, Satvik Tantra, Empathy, Ayurveda Naturopathy)
शिव... शिव...
शिव शक्ति... शिव शक्ति...
शिव शंकर...
भोलेनाथ...
सदाशिवाय…
महादेव...
अघोरे... रुद्राय... भैरवाय...
अर्धनारीश्वर
भैरव भैरवी
भव भवानी
रुद्र रुद्राणी
हालांकि भगवान शिव के अनगिनत नाम हैं, आप उनमें से किसी एक को चुन सकते हैं जो शिव पुराण में उनके प्रमुख 1008 नामों में से है और जो आपके साथ समर्थन करता है।
मंत्र का चयन
पुनरावृत्तियों की संख्या का निर्धारण
गुरु द्वारा संकल्प का स्थापना
माला और मंत्र की संस्कार और उत्कीलन
संकल्प, नयस और पूजा
दैहिक अभ्यास जप
एकाग्रता और भक्ति
पूर्णता हवन, अर्पण, तर्पण, मर्जन, भोजन
एकीकरण
कुण्डलिनी योग का परिचय
कुण्डलिनी हठ योग आस
कुण्डलिनी प्राणायाम
Kundalini Meditation
Kundalini Kriyas
Kundalini Mantra, Yantra & Tantra
Kundalini Bandhas and Mudras
Kundalini Yoga Nidra & Visualization
Kundalini Philosophy and Spirituality
Kundalini Safety and Ethics
The inherent definition of Japa tells us that it should be uttered in a low voice, however, you can perform a Japa in varying degrees of loudness.
Vaikhari Japa –
When the mantra is chanted out loud so that even others can also hear, it is vaikhari Japa. This type of Japa can come in handy when there are sounds nearby and you are unable to concentrate.
Upamshu Japa –
Mantra chanted softly or in a whisper tone is called upamshu Japa. In this type of Japa practice, the lips of the practitioner barely move. Upamshu japa is considered more effective than vaikhari japa.
Manasik Japa –
Manasik Japa is when you repeatedly chant the mantra in your mind. It is difficult to chant something in the mind as you need immense focus and concentration and a determination to not get distracted. Also, this type of japa is considered the most powerful when compared to the above two.
Lkhita Japa –
There is also another type of Japa where you write the mantra as you speak it out loud or keep silent. This is called likhita Japa. It is a form of Japa meditation where instead of counting on Japa mala beads, you are writing down the mantra for enhanced concentration.
अनाचारवतां पुंसामविशुद्धषडध्वनाम् ।
अनादिष्टोऽपि गुरुणा मन्त्रोऽयं न च निष्फलः ॥ ६४
आचारहीन तथा षडध्वशोधनसे रहित पुरुषोंके लिये और जिसे गुरुसे मन्त्रकी दीक्षा प्राप्त नहीं हुई उनके लिये भी यह मन्त्र निष्फल नहीं होता है ॥ ६४॥
अन्त्यजस्यापि मूर्खस्य मूढस्य पतितस्य च।
निर्मर्यादस्य नीचस्य मन्त्रोऽयं न च निष्फलः ॥ ६५
सर्वावस्थां गतस्यापि मयि भक्तिमतः परम्।
सिध्यत्येव न संदेहो नापरस्य तु कस्यचित् ।। ६६
अन्त्यज, मूर्ख, मूढ़, पतित, मर्यादारहित और नीचके लिये भी यह मन्त्र निष्फल नहीं होता।
किसी भी अवस्था में पड़ा हुआ मनुष्य भी, यदि मुझमें उत्तम भक्तिभाव रखता है,
तो उसके लिये यह मन्त्र निःसंदिड सिद्ध होगा ही, किंतु दूसरे किसीके लिये वह सिद्ध नहीं हो सकता ॥ ६५-६६ ॥
Everyone who has faith and devotion in God Shiva, whether they are students, youth, householders, elderly, girls, or married women, of all castes and professions, can do Shiv Sadhna.
१-नाम जाप में देवता के नाम बार बार आवृत्ति की जाती है जैसे शिव शिव,
और मंत्र जाप में देवी देवता के मंत्र जपते है जैसे शिव के लिए पंचाक्षरी, षडाक्षरी मंत्र होते हैं/
२ नाम किसी भी स्थित में जपा जा सकता है परन्तु मंत्र सुनिश्चित स्थित में ही जपते है/
३ नाम की दीक्षा लेने के आवश्यकता नहीं होती है पर मंत्र दीक्षा लेकर ही जपते है/
४- नाम का प्रभाव विश्वास पर आधारित है मंत्र का प्रभाव गुरु गम्य होता है/
५- नाम के आधार पर प्रायः विश्वासाश्रित सभी काम सफल होने है और मंत्र बिशेष अनुष्ठान के लिए प्रयोग करते हैं
न लग्नतिचिनक्षत्रवारयोगादयः प्रिये।
अस्यात्यन्तमवेक्ष्याः स्युनैष सुप्तः सदोदितः ॥ ६७
न कदाचिन्न कस्यापि रिपुरेष महामनुः।
सुसिद्धो वापि सिद्धो वा साध्यो वापि भविष्यति ।। ६८
प्रिये। इस मन्त्रके लिये लग्न, तिथि, नक्षत्र, वार और योग आदिका अधिक विचार अपेक्षित नहीं है।
यह मन्त्र कभी सुप्त नहीं होता, सदा जाग्रत् ही रहता है। यह महामन्त्र कभी किसीका शत्रु नहीं होता।
यह सदा सुसिद्ध, सिद्ध अथवा साध्य ही रहता है ॥ ६७-६८॥
गुरु दीक्षा का समय चयन एक व्यक्ति के आस्थाओं, स्वभाव, और धार्मिक परंपराओं पर निर्भर कर सकता है। हिन्दू धर्म में, ऐसी पूजनीय घड़ी का चयन करते समय ज्योतिषीय मुहूर्त और धार्मिक पंचांग का महत्व होता है। ज्योतिषशास्त्र में कहा जाता है कि विशेष मुहूर्तों में कार्यों का आरंभ करना शुभ होता है। यह इस प्रकार किया जा सकता है:
तिथि (Lunar Calendar): चंद्रमा के स्थिति और तिथियों का महत्व हो सकता है। कुछ लोग शुक्ल पक्ष की तिथियों को अधिक शुभ मानते हैं, जबकि कुछ कृष्ण पक्ष की तिथियों को।
नक्षत्र (Constellation): आसमान पर चलने वाले तारों की स्थिति और नक्षत्रों का भी महत्व हो सकता है।
वार (Day): कुछ लोग विशेष वार को शुभ मानते हैं, जैसे कि Sunday, Monday, बृहस्पतिवार (गुरुवार) या रविवार (आदित्यवार)।
मुहूर्त (Auspicious Time): rahu kaal ki alava
गुरु दीक्षा के लिए उपयुक्त और शुभ मुहूर्त का चयन करने के लिए स्वयं की संप्रदायिक आदतों और आस्थाओं के अनुसार आपके स्थानीय धार्मिक आचार्य या पंडित से परामर्श करना सबसे अच्छा है।
Main – Guru Purnima, har mahine purnmasi. maha shivratri, masik shivratri, Navratri
स्टेप नीचे देखें, ध्यान से पढ़ें और अपनायें. साधना आरम्भ करें.
सामने मोबाइल रख कर Guru Diksha Puja फोटो सीरीज़ / वीडियो बना लें, इस वीडियो को आपने गुरु जी (SHIVA BLESSINGS TRUST) को भेजना होता है अपने पूर्ण नाम, माता-पिता का नाम, वर्तमान शहर, मूल निवासी, गोत्र के साथ (ALONG WITH GURU DIKSHA DATE & TIME YOU HAVE PERFORMED PUJA) - गुरु जी संकल्प करके आपके नाम से आपको ऑडियो/वीडियो भेजते हैं, कि आपकी गुरु दीक्षा उन्होंने देख ली है, और आपको विधिवत शिष्य मान लिया है।
1.
एक दीपक तेल का या घी का प्रज्वलित करें।
भगवान शिव शक्ति शक्ति से युक्त गुरु जी का फोटो सामने रखें। भगवान शिव, शक्ति, दीपक (अग्नि देव) को साक्षी बनायें
कहें - हे (Guru Ji Aum Sushant) आज से आप मेरे गुरू हैं मै आपका / आपकी शिष्य हूं,
आप सभी मुझ पर कृपा करें, मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें.
2.
११ बार प्राणायाम करके २ मिनट गुरु जी की फोटो पर त्राटक करें (एकटक देखते रहें)।
उनके आँखों पर या माथे के बीच जहां तीसरी आँख होती है (आज्ञा चक्र), उसी पर अपनी नजरें टिकाए रखें।
3.
गुरु जी द्वारा दिव्य ऊर्जावान 'स्फटिक शिवलिंगम' की वीडियो पर ध्यान करें, उसकी ऊर्जा को अपने शरीर में स्थापित करें।
दोनों हाथों सें शिव लिंगम और शक्ति योनि मुद्रा बनाएं।
मूलबंध लगाकर - १०८ बार ॐ नमः शिवाय का जाप करें (लम्बे उच्चारण करने हैं)।
4.
अब आपको जो आपके गुरु ने गुरु मंत्र दिया है, तो सबसे पहले इष्ट/जिसे आप उसे पहले 1 माला गुरु मंत्र के माला करें फिर मुख्य जाप को।
लेकिन सावधान रहें कि यह मंत्र किसी को भी प्रकट नहीं किया जाना चाहिए।
१०८ मंत्र को अपने शरीर की १०८ पॉइंट्स में स्थापित करें - पंचमहाभूत (5 तत्व) पर ध्यान करें और एक-एक करें।
5.
अब शांति से आँखें बंद करके बैठें या लेट जाएं
10-15 मिनट योग निद्रा में चले जाएं, ताकि अब जो आपके रूम में जो शिव शक्ति और गुरु जी की सारी दिव्य ऊर्जा है वो आपके अंदर आ जाए।।
6.
उठने से पहले शिव शक्ति का ध्यान करें।
शिव शक्ति और गुरु का धन्यवाद करें।
जय भोलेनाथ, जय आदि शक्ति, जय गुरुदेव।
Note.
गुरु दीक्षा की इस वीडियो को आपने गुरु जी (SHIVA BLESSINGS TRUST) को भेजना होता है अपने पूर्ण नाम, माता-पिता का नाम, वर्तमान शहर, मूल निवासी, गोत्र के साथ (ALONG WITH GURU DIKSHA DATE & TIME YOU HAVE PERFORMED PUJA) - गुरु जी संकल्प करके आपके नाम से आपको ऑडियो/वीडियो भेजते हैं, कि आपकी गुरु दीक्षा उन्होंने देख ली है, और आपको विधिवत शिष्य मान लिया है।
• संकल्प के समय पर एक माला दैनिक मंत्र का करें, ज्यादा का नहीं, चाहिए मानसिक ही न हो, अगर यात्रा, स्वास्थ्य या और कोई भी समस्या हो, पर करना है जरूर।
• धीरे-धीरे 24 लाख जाप कर सम्पूर्ण मंत्र सिद्धि करें।
• गुरु की मार्गदर्शा में हठ योग द्वारा शिव शक्ति कुंडलिनी जागरण की यंत्र शुरू करो।
• जब अगली साधना - उन्नत स्तर में शुरू करो, तो कीलक मंत्र को और ज्यादा विधिवत – मंत्र उत्कीलन पद्धति से मंत्र की पूर्ण सिद्धि प्राप्त करो।
• गुरु बनने के बाद गुरु जी को भूले नहीं होता, रोज मंत्र जाप से पहले गुरु की नाम की साथ गुरु मंत्र की 1 माला करनी होती है।
• जब संभव हो, उनके मार्गदर्शन आशीर्वाद लेते रहो / जैसे हो सकते सेवा करो।
• गुरु जी के मिशन को आगे बढ़ाओ, संस्थान के सामाजिक और आध्यात्मिक परियोजनाओं का प्रचार-प्रसार करो।
• जब गुरु जी से कम से कम 6-12 महीने नियमित आध्यात्मिक रूप से जुड़ो, तो गुरु दीक्षा शिविर में शामिल हो और पूर्ण दीक्षा लो… महाशिवरात्रि / गुरु पूर्णिमा / नवरात्रो में होती है।
• प्रोजेक्ट मेक इन इंडिया / युवा रोजगार - अगर संभव होतो संस्थान की आर्थिक परियोजनाओं को वाणिज्यिक और आध्यात्मिक रूप से चलाओ जैसे – योग शिक्षक प्रशिक्षण, आयुर्वेद का सामान, जैविक और हिमालयी खाद्य उत्पाद, पूजा सामग्री, जैविक चाय स्टॉल और सात्विक कैफे का काम अपने शहर में शुरू करो।
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