Shiv Pujan with Bhakti
Easy Shiv Worship at Home

सामान्य पूजा विधि

देव पूजन की प्रविधि सामान्यतः अतिथि सत्कार की पुरानी परंपरा के समान है। इसमें हम भगवान को आवाहन करते हैं और उन्हें विभिन्न सामग्रियों से सेवा और सत्कार करते हैं।

इसके अतिरिक्त, दो और महत्वपूर्ण बिंदुएँ हैं:

स्वयं का शुद्धीकरण और ध्यान-प्रार्थना

भगवान की पूजन सामग्री का भी शुद्धीकरण

कर्मकांड के साथ-साथ, पूजा में वैदिक और लौकिक दोनों प्रकार के मंत्र पढ़े जाते हैं। कर्मकांडीय दृष्टि से, पंचोपचार और षोडशोपचार पूजन सबसे प्रमुख हैं।

सामान्य पूजा विधि में देवता का आवाहन करके विभिन्न सामग्रियों से सेवा करना होता है। इसके अतिरिक्त, स्वयं का शुद्धीकरण, ध्यान-प्रार्थना, और पूजन सामग्री का भी शुद्धीकरण किया जाता है। कर्मकांड के साथ-साथ, वैदिक और लौकिक मंत्रों का पाठ किया जाता है।

पूजन विधि के लिए कोई एकरूप प्रक्रिया निर्धारित नहीं की जा सकती, क्योंकि अवसर व देव के अनुसार प्रक्रिया परिवर्तित हो सकती है। विद्वानों का मतैक्य भी संभव नहीं और भक्ति के भाव का विधानीकरण भी संभव नहीं।

फिर भी जनसामान्य के पूजन-अर्चन के लिए पूजा पद्धति की सामान्य रूपरेखा निर्धारित की जा सकती है। इसके साथ ही कुछ जनसुविधार्थ सामान्य दिशानिर्देश भी बनाए जा सकते हैं, जैसे-

प्रत्येक पूजारंभ के पूर्व निम्नांकित आचार-अवश्य करने चाहिये-

1. आत्मशुद्धि, आसन शुद्धि, पवित्री धारण, पृथ्वी पूजन, संकल्प, दीप पूजन, शंख पूजन, घंटा पूजन, स्वस्तिवाचन आदि

2. भूमि, वस्त्र आसन आदि स्वच्छ व शुद्ध हों

3. चौक, रंगोली, मंडप बना लिया जाये

4. मुहूर्त आदि का विचार

5. यजमान पूर्वाभिमुख बैठे, पुरोहित उत्तराभिमुख

6. विवाहित यजमान की पत्नी पति के साथ ग्रंथिबन्धन कर पति की वामंगिनी के रूप में बैठे

7. पूजन के समय आवश्यकतानुसार अंगन्यास, करन्यास, मुद्रा उपयोग

8. औचित्यानुसार विविध देव प्रतीक भी बनाये जा सकते हैं, जैसे-

33 कोटि देवता,
त्रिदेव,
नवदुर्गा,
एकादश रुद्र,
नवग्रह,
दश दिक्पाल,
षोडश लोकपाल,
सप्तमातृका,
दश महाविद्या,
बारह यम,
आठ वसु,
चौदह मनु,
सप्त ऋषि,
घृतमातृका,
दश अवतार,
चौबीस अवतार,
आदि
पूजन  संकल्प विशेष का परिवर्तन करके विविध पूजा के आयोजन सामान्य रूप से कराये जा सकते हैं।

How to do Shiv Pujan yourself at Home
Easy Sodashupchar
(Complete 1 Hr Video)

Shiv Pujan Start

पवित्रकरण:
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें
अपवित्रःपवित्रोवासर्वावस्थांगतोऽपिवा
यःस्मरेत्‌पुण्डरीकाक्षंबाह्याभ्यंतरःशुचिः
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।

आसन:
मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें

आचमन:
इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें-
1. ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
2. ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,
3. माधवाय नमः स्वाहा ।
यह बोलकर हाथ धो लें- हस्तं प्रक्षालयामि ।

दीपक:
दीपक प्रज्वलित करें एवं हाथ धोकर दीपक का पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
(पूजन कर प्रणाम करें)

स्वस्ति-वाचन:
निम्न मंगल मंत्र बोलें
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः ॥

(नोट: पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें।)

पंचामृत बनाने के लिए, एक पात्र में दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल को मिलाकर ले। शिव जी का लिंगम, मूर्ति, या तस्वीर को एक चौकी पर स्थापित करें और उन्हें कोरा और लाल वस्त्र से ढक दें। चौकी को चारों तरफ से केले के पत्तों से सजाएं। गणेश और अंबिका की मूर्तियों के अभाव में, दो सुपारीयों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बांधकर, कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर स्थापित करें और उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापित करें।

संकल्प

अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर Shiv Shakti आदि के पूजन का संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलि-युगे कलि प्रथम चरणे जंबूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्ष आर्य्यावर्तेक देशांतर्गत (अमुक) क्षेत्रे/नगरे/ग्रामे (अमुक) संवत्सरे, (अमुक) ऋतौ (अमुक) मासा नाम मासे (अमुक) मासे (अमुक) तिथौ (अमुक) वासरे (अमुक) नक्षत्रे (अमुक) राशि सर्व गृहेषु यथा यथा राशि स्थितेषु सत्सु एवं गृहगुणगण विशेषण विशिष्ठायां शुभ पुण्यतिथौ (अमुक) गोत्रोत्पन ्न(अमुक)नाम ( शर्मा/ वर्मा/ गुप्तो दासोऽहम्‌ अहं) ममअस्मिन कायिक वाचिक मानसिक ज्ञातज्ञात सकल दोष परिहारार्थं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं आरोग्यैश्वर्य दीर्घायुः विपुल धन धान्य समृद्धर्थं पुत्र-पौत्रादि अभिवृद्धियर्थं व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थं सुपुत्र पौत्रादि बान्धवस्य सहित शिव शक्ति पूजनम्‌ च करिष्ये / करिष्यामि ।

गणेशाम्बिका पूजन
(पञ्चाङ्ग पूजा विधि)

 

आचमन

(आत्म शुद्धि के लिए)


 ॐ केशवाय नमः,
ॐ नारायणाय नमः,
ॐ माधवाय नमः।
तीन बार आचमन कर आगे दिये मंत्र पढ़कर हाथ धो लें।
ॐ हृषीकेशाय नमः।।
पुनः बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर और पूजा सामग्री पर निम्न श्लोक पढ़ते हुए छिड़कें।


 ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
 यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।


आसन शुद्धि-
मंत्र पढ़कर आसन पर जल छिड़के-


शिखाबन्धन-

तिष्ठ देवि शिखाबद्धे तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे।।


कुश धारण-
निम्न मंत्र से बायें हाथ में तीन कुश तथा दाहिने हाथ में दो कुश धारण करें।
पुनः दायें हाथ को पृथ्वी पर उलटा रखकर "ॐ पृथिव्यै नमः" इससे भूमि की पञ्चोपचार पूजा का आसन शुद्धि करें।


यजमान तिलक-
पुनः ब्राह्मण यजमान के ललाट पर कुंकुम तिलक करें।


स्वत्ययन
उसके बाद यजमान आचार्य एवं अन्य ऋत्विजों के साथ हाथ में पुष्पाक्षत लेकर स्वस्त्ययन पढ़े।
हाथ में लिए पुष्प और अक्षत गणेश एवं गौरी पर चढ़ा दें।
पुनः हाथ में पुष्प अक्षत आदि लेकर मंगल श्लोक पढ़े।
हाथ में लिये अक्षत-पुष्प को गणेशाम्बिका पर चढ़ा दें।


संकल्प
दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प और द्रव्य लेकर संकल्प करे।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ॐ स्वस्ति श्रीमन्मुकन्दसच्चिदानन्दस्याज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे एकपञ्चाशत्तमे वर्षे प्रथममासे प्रथमपक्षे प्रथमदिवसे द्वात्रिंशत्कल्पानां मध्ये अष्टमे श्रीश्वेतबाराहकल्पे स्वायम्भुवादिमन्वतराणां मध्ये सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे कृत-त्रोता-द्वापर- कलिसंज्ञानां चतुर्युगानां मध्ये वर्तमाने अष्टाविंशतितमे कलियुगे तत्प्रथमचरणे तथा पञ्चाशत्कोटियोजनविस्तीर्ण-भूमण्डलान्तर्गतसप्तद्वीपमध्यवर्तिनि जम्बूद्वीपे तत्रापि श्रीगङ्गादिसरिद्भिः पाविते परम-पवित्रे भारतवर्षे आर्यावर्तान्तर्गतकाशी-कुरुक्षेत्र-पुष्कर-प्रयागादि-नाना-तीर्थयुक्त कर्मभूमौ मध्यरेखाया मध्ये अमुक दिग्भागे अमुकक्षेत्रे ब्रह्मावर्तादमुकदिग्भागा- वस्थितेऽमुकजनपदे तज्जनपदान्तर्गते अमुकग्रामे श्रीगङ्गायमुनयोरमुकदिग्भागे श्रीनर्मदाया अमुकप्रदेशे देवब्राह्माणानां सन्निधौ श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्य-समयतोऽमुक संख्यापरिमिते प्रवर्तमानवत्सरे प्रभवादिषष्ठिसम्वत्सराणां मध्ये अमुकनाम सम्वत्सरे, अमुकायने, अमुकगोले, अमुकऋतौ, अमुकमासे, अमुकपक्षे, अमुकतिथौ, अमुकवासरे, यथांशकलग्नमुहूर्तनक्षत्रायोगकरणान्वित.अमुकराशिस्थिते श्रीसूर्ये, अमुकराशिस्थिते चन्द्रे, अमुकराशिस्थे देवगुरौ, शेषेषु ग्रहेषु यथायथाराशिस्थानस्थितेषु, सत्सु एवं ग्रहगुणविशिष्टेऽस्मिन्शुभक्षणे अमुकगोत्रोऽमुकशर्म्मा वर्मा-गुप्त-दास सपत्नीकोऽहं श्रीअमुकदेवताप्रीत्यर्थम् अमुककामनया ब्राह्मणद्वारा कृतस्यामुकमन्त्रपुरश्चरणस्य सङ्गतासिद्धîर्थ- ममुकसंख्यया परिमितजपदशांश-होम-तद्दशांशतर्पण-तद्दशांश-ब्राह्मण-भोजन रूपं कर्म करिष्ये।

 

अथवा
ममात्मनः श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य द्विपदचतुष्पदसहितस्य सर्वारिष्टनिरसनार्थं सर्वदा शुभफलप्राप्तिमनोभि- लषितसिद्धिपूर्वकम् अमुकदेवताप्रीत्यर्थं होमकर्माहं करिष्ये।
अक्षत सहित जल भूमि पर छोड़ें।

 

पुनः जल आदि लेकर
तदङ्गत्वेन निर्विध्नतासिद्धîर्थं श्रीगणपत्यादिपूजनम् आचार्यादिवरणञ्च करिष्ये।
तत्रादौ दीपशंखघण्टाद्यर्चनं च करिष्ये।

 

जलपात्र (कर्मपात्र) का पूजन
इसके बाद कर्मपात्र में थोड़ा गंगाजल छोड़कर गन्धाक्षत, पुष्प से पूजा कर प्रार्थना करें।
ॐ गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि! सरस्वति!।
नर्म्मदे! सिन्धु कावेरि! जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
अस्मिन् कलशे सर्वाणि तीर्थान्यावाहयामि नमस्करोमि।
कर्मपात्र का पूजन करके उसके जल से सभी पूजा वस्तुओं पर छिड़कें.

 

घृतदीप (ज्योति) पूजन
पात्र की पूजा कर ईशान दिशा में घी का दीपक जलाकर अक्षत के ऊपर रखकर

शंख पूजन
शंख को चन्दन से लेपकर देवता के वायीं ओर पुष्प पर रखकर शंख मुद्रा करें।

घण्टा पूजन
गरुडमुद्रा दिखाकर घण्टा बजाएं। दीपक के दाहिनी ओर स्थापित कर दें।
धूपपात्र की पूजा
धूपपात्र की पूजा कर स्थापना कर दें।


गणेश गौरी पूजन
हाथ में अक्षत लेकर-भगवान् गणेश का ध्यान-

गौरी का ध्यान

गणेश का आवाहन
हाथ में अक्षत लेकर
हाथ के अक्षत को गणेश जी पर चढ़ा दें।
पुनः अक्षत लेकर गणेशजी की दाहिनी ओर गौरी जी का आवाहन करें।

 

गौरी का आवाहन

प्रतिष्ठा
(आसन के लिए अक्षत समर्पित करे)
पाद्य, अर्घ्य. आचमनीय, स्नानीय और पुनराचमनीय हेतु जल अर्पण करें

आसन
पंचामृत स्नान
शुद्धोदक स्नानं
वस्त्र एवं उपवस्त्र
यज्ञोपवीत
नाना परिमल द्रव्य
धूप
दीप
नैवेद्य
तांबूल
प्रार्थना
(जल छोड़ दें।)

 

नोट: इसके पश्चात (1) कलश पूजन (2) पंचदेव पूजन (3) षोडशमातृका पूजन तथा (4) नवग्रह पूजन भी किया जाता है।

Basic Shiv Pujan
(शिव पूजन)


पूजन प्रारंभ
ध्यान

आह्वान
(आह्वान के लिए पुष्प अर्पित करें।)

आसन
(पुष्प अर्पित करें।)

पाद्य
(पाद्य अर्पित करें।)

अर्घ्य
(अर्घ्यपात्र से चन्दन मिश्रित जल दें।)

आचमन
(कर्पूर से सुवासित जल चढ़ाएँ।)

स्नान
दुग्धस्नान
दधिस्नान
घृत स्नान
मधुस्नान
शर्करास्नान

 

पञ्चामृतस्नान
(पंचामृत स्नान व जल से स्नान कराएँ।)

 

गन्धोदक स्नान
(चंदनयुक्त जल से स्नान कराएँ।)

 

शुद्धोदकस्नान
(गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)

 

आचमन
(आचमन के लिए जल दें।)

 

वस्त्र
वस्त्र के बाद आचमन के लिए जल दे।

 

उपवस्त्र
उपवस्त्र चढ़ाएँ, आचमन के लिए जल दें।

 

आचमन
उपवस्त्र के बाद आचमन के लिये जल दें।

 

यज्ञोपवीत
(यज्ञोपवीत अर्पित करें।)

आचमन
पश्चात 'यज्ञोपवीतांते आचमनीयं जलं समर्पयामि' से आचमन कराएँ।

 

चन्दन
(केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।)

 

अक्षत
(कुंकुम युक्त अक्षत चढ़ाएँ। बिना टूटे चावल सात बार धोए हुए अक्षत कहलाते हैं)

 

पुष्पमाला
(पुष्प तथा पुष्पमालाएँ चढ़ाएँ)

 

दूर्वा
(दूर्वांकुर अर्पित करें)

 

आभूषण
(आभूषण समर्पित करें)

 

सिन्दूर
अबीर गुलाल आदि नाना परिमल द्रव्य


सुगन्धिद्रव्य
(परिमल द्रव्य चढ़ाएँ)

 

धूप
(धूप आघ्रापित करें)

 

दीप
(दीपक दिखाकर हाथ धो लें)

हस्तप्रक्षालन
हाथ धो ले।


नैवेद्य
पुष्प चढ़ाकर बायीं हाथ से पूजित घण्टा बजाते हुए।
(पंचमिष्ठान्न व सूखी मेवा अर्पित करें)

आचमन
(नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें।)


ऋतुफल
(ऋतुफल अर्पित करें तथा आचमन व उत्तरापोऽशन के लिए जल दें।)

ताम्बूल
(इलायची, लौंग-सुपारी के साथ ताम्बूल अर्पित करे।)


दक्षिणा
(द्रव्य दक्षिणा समर्पित करे।)


विशेषार्घ्य
ताम्रपात्र में जल, चन्दन, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा और दक्षिणा रखकर अर्घ्यपात्र को हाथ में लेकर मन्त्र पढ़ेंः

आरती
(कर्पूर की आरती करें, आरती के बाद जल गिरा दें।)

 

मन्त्र पुष्पांजलि
अंजली में पुष्प लेकर खड़े हो जायें।
(पुष्पाञ्जलि अर्पित करे।)


प्रदक्षिणा
(प्रदक्षिणा करे।)


क्षमा-याचना


प्रार्थना

रुद्र अभिषेक पूजा क्या है ?

रुद्र अभिषेक पूजा मे भगवान त्रयंबकेश्वर की मंत्र के साथ पंचामृत पूजा की जाती है जो इसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति की सभी इच्छाओं को पूरा करता है। इससे सफलता मिलती है, सभी कामनाओं की पूर्ति होती है; यह नकारात्मकता को समाप्त करता है, नकारात्मक कर्म को काट देता है और जीवन में चौतरफा खुशी देता है। पंचामृतपूजा दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर की होती है।

1. रुद्र अभिषेक पूजा
2. लगहु-रुद्र अभिषेक
3. महा-रुद्र अभिषेक

 

रुद्राभिषेक पूजा की तैयारी कैसे करें

भगवान शिव की पूजा और आराधना करने के लिए रुद्राभिषेक को सबसे फलदायी माना गया है | रुद्राभिषेक पूजन के द्वारा भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है | आपको रुद्राभिषेक की पूजा किस तरह करनी है आइये जानते है –

यदि रुद्राभिषेक पूजा मंदिर में कर रहे है तो आपको जहाँ शिवलिंग है वहीँ पर पूजा करनी है |

यदि आप घर में रुद्राभिषेक करना चाह रहे है तो फिर आपको उत्तर दिशा में शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए और पूर्वाभिमुख होकर पूजा करनी चाहिए |

शिवलिंग के साथ ही गणेश जी, अन्य देवता एवं नवग्रह के पूजन के लिए भी पूर्व की दिशा में एक चौकी पर सभी को स्थान देना चाहिए |

रुद्राभिषेक के दिन सभी परिवारजन को स्नान ध्यान कर पूजा के लिए सही समय पर पहुंचना चाहिए |

घर को आशा पाला के पत्तों एवं फूलमालाओं से सुसज्जित करना चाहिए |

रुद्राभिषेक शुरू होने से पहले ही पूजन सामग्री एवं अन्य तरह की तैयारी कर लेनी चाहिए |

रुद्राभिषेक पूजन में बहुत से मंत्रो का उच्चारण होता है इसलिए इसके लिए अनुभवी पंडित द्वारा यह पूजा करवानी चाहिए|

भगवान के रुद्राभिषेक के लिए शुद्ध जल में गंगाजल, भांग, दूध, गन्ने का रस आदि मिला लें |
रुद्राभिषेक के दौरान आचार्य रुद्री का पाठ करते है |
अब आप श्रृंगी के द्वारा धीरे शिवलिंग पर जल चढ़ाएं |
जल चढाने के दौरान आप रुद्रास्टाध्यायी का पाठ करें या फिर ॐ नमः शिवायः का जाप करें |
रुद्राभिषेक पूरा होने के बाद सभी एकत्रित भक्तजन भगवान शिव की आरती गायें |
रुद्राभिषेक के जल को पुरे घर में छिड़कें |
भगवान शिव को शुद्धता से घर में बनाएं व्यंजनों का भोग लगाएं |

 

रुद्राभिषेक मन्त्र

ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च
मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥
ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति
ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय्‌ ॥
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः
सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः ॥
वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो
रुद्राय नमः कालाय नम:
कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः
बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः
सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः ।
भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्‌भवाय नमः ॥
नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा ।
भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥
यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्योsखिलं जगत् ।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम्
उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात् ॥
सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ।
पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥
विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् ।
सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥

 

लघु रुद्राभिषेक मंत्र

रुद्रा: पञ्चविधाः प्रोक्ता देशिकैरुत्तरोतरं ।
सांगस्तवाद्यो रूपकाख्य: सशीर्षो रूद्र उच्च्यते ।।
एकादशगुणैस्तद्वद् रुद्रौ संज्ञो द्वितीयकः ।
एकदशभिरेता भिस्तृतीयो लघु रुद्रकः।।

  • रुद्र अभिषेक पूजा के लाभ:

    चंद्रमा के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए।
    विभिन्न नक्षत्रों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और उन्हें सहायक बनाने के लिए।
    सद्भाव और धन लाने के लिए।
    नकारात्मकता को दूर करना, बुरे कर्म के बुरे प्रभावों को नकारना और जीवन में सुरक्षा देना।
    भक्तों को बुरी शक्तियों और संभावित जोखिम से बचाने के लिए
    तेज दिमाग और अच्छी ताकत हासिल करने के लिए।
    शिक्षा, नौकरी और कैरियर में सफलता
    इसके अलावा, स्वस्थ संबंधों के लिए
    वित्तीय समस्याओं का उन्मूलन
    स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का उन्मूलन
    तेज दिमाग और सकारात्मक भावना वाले व्यक्ति को समर्पित करना
    यह धन और सद्भाव लाता है।
    प्रतिकूल ऊर्जा को हटाता है और बुरे कर्म के बुरे प्रभावों को नकारता है।
    बुराइयों से रक्षा करता है और कठिनाइयों से निपटने की ताकत देता है।
    किसी की कुंडली में कई दोषों के बुरे प्रभाव को भी समाप्त कर सकता है जैसे कि राहु दोष, श्रीपिटदोष, आदि।

  • रुद्राभिषेक पूजा से घर से नकारात्मकता दूर होती है और घर में सकारात्मक वातावरण बनता है |
    रुद्राभिषेक करने से इस जन्म के साथ पिछले जन्म के भी पातक पाप नष्ट हो जाते है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है |
    भगवान रूद्र में सभी देवताओं का वास होता है इसलिए जब हम रुद्राभिषेक करते है तो सभी देवता प्रसन्न होते है |
    किसी व्यक्ति के यदि कालसर्प योग लगा हो तो उसे शिव रुद्राभिषेक करना चाहिए इससे कालसर्प योग का प्रभाव दूर होता है |

  • इच्छित मनोकामना पूर्ण हो इसके लिए दूध के द्वारा रुद्राभिषेक मन्त्र का पाठ करें |
    धनप्राप्ति और सभी तरह के कर्जो से मुक्ति पाने के लिए फलों के रस से रुद्राभिषेक करे |
    घर की सभी तरह की बाधाओं को दूर करने के लिए सरसों के तेल से रुद्राभिषेक करें |
    यदि आप कोई नया कार्य शुरू कर रहे है तो शुद्ध जल में चने की दाल मिलाकर रुद्राभिषेक करें |
    काले तिल के द्वारा रुद्राभिषेक करने से बुरी नजर व तंत्र से बचाव होता है |
    शुद्ध जल में घी व शहद मिलाकर रुद्राभिषेक करने से रोग दोष दूर होते है और स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है |
    संतान प्राप्ति के लिए शहद से रुद्रभिषेक करना चाहिए |

Join Kundalini Meditation & Spiritual Seekers Close Community

Any one, any sex, any age, any caste, any religion, any country, any faith can join

If you want connect with Guru Ji, take Guru Diksha
or join the Spiritual meditation group,
Send your complete details & query to ShivaBlessingsTrust@gmail.com


Our Beliefs:
 - We Serve God, By Serving Others in need.
 - Do everything with a Pure Heart.
 - Love. Share. Donate. Help.


शिव भक्तों, अगर आप शिव मंत्र साधना करने - आप किस शहर से हैं, कौन सा शिव मंत्र साधना जपकर रहे हैं, या जुडी कोई भी परेशानी, विधि, गुरु दीक्षा आदि से संबंधित नीचे दिए गए (WhatsApp) लिंक में हमसे सवाल कर सकते हैं।